Friday 16 April 2010


नमश्कार  मेरे  प्रियजनों,,, मेरे सहियोगी मित्रो,,सखियों,,,एवं  मेरे  प्रिय विद्यार्थियों....जो  की मेरको  अछि तरह जानते  होंगे....अपना  परिचय  देने  से पहले  २ पंक्तियाँ सुनाता हू---


"ज़िन्दगी  टुकडो में  जीना  छोड़ दे..
तम्मंनाओ की डोर  फासलों से जोड़  दे....
मुस्किलें तो  हर  हुस्न  का  इरादा  है...
मुकाम को  हज़िल  करना है  तुझे अगर...
तो  खुदा  से  रिस्ता जोड़  बन्दों  को  अलविदा कह दे...."

मेरी   खुसामत  है  की  आप  लोगों  के  प्यार  और  दुवाओ  ने  मुझे  आपसे  इस  कदर  जोड़े  रक्खा  है,,के  आंधी  आये  चाहे  तूफ़ान,,,,हम टूट कर   बिखर  भी  जाएँ,,,,,फिर  भी  ये  विस्वास की  डोर  हमे  बंधाये  रक्खेगी......
विस्वास के दम पे इंसान किसी भी मुकाम को सरलता से हाज़िल कर सकता है..

काटे मिलते हैं फूलों की तलास में,,
गम भी मिलते हैं ख़ुसियों की तलास में,,
इन्तेजार मिल जाता है चाहत की प्यास में,,
ये राहे तो गुजरती जायेंगी मंजिल की आस में,,,
लेकिन....
जस्बात हमारे मिटेंगे  नहीं,,पल दो पल की साँस  में,,

मेरी आप सभी लोगों से ये दुवा रहेगे,,के इस अज्ञान  रूपी  अंधियारे में ऐसा दीपक
ढूंड निकाले,,जो इस जहाँ को रोसन कर दे...
इतना..... के  खुदा  भी हमे साफ़ नज़र आये!!!

 

Tuesday 13 April 2010